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अ॒स्मभ्यं॑ रोदसी र॒यिं मध्वो॒ वाज॑स्य सा॒तये॑ । श्रवो॒ वसू॑नि॒ सं जि॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmabhyaṁ rodasī rayim madhvo vājasya sātaye | śravo vasūni saṁ jitam ||

पद पाठ

अ॒स्मभ्य॑म् । रो॒द॒सी॒ इति॑ । र॒यिम् । मध्वः॑ । वाज॑स्य । सा॒तये॑ । श्रवः॑ । वसू॑नि । सम् । जि॒त॒म् ॥ ९.७.९

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:7» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:29» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक के मध्य में (मध्वः वाजस्य) बड़े बल की (सातये) प्राप्ति के लिये (रयिम्) धन (श्रवः) ऐश्वर्य (वसूनि) रत्न (सञ्जितम्) हमको आप दें ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा जब प्रसन्न होता है तो नाना प्रकार की विभूतियों का प्रदान करता है, क्योंकि जो विभूतियें हैं, वे सब परमात्मा का ऐश्वर्य हैं, जैसा कि “यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा। तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंशसंभवम्” गीता। अर्थात् जो कुछ विभूतिवाली या शोभावाली या बलवाली वस्तु है, वह सब परमात्मा के ऐश्वर्य की सूचक है ॥९॥ यह सातवाँ सूक्त और उनतीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥७॥२९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (रोदसी) द्यावापृथिव्योर्मध्ये (मध्वः वाजस्य) महतो बलस्य (सातये) प्राप्तये (रयिम्) धनम् (श्रवः) ऐश्वर्यम् (वसूनि) रत्नानि च (सञ्जितम्) प्रयच्छतु मह्यम् ॥९॥ इति सप्तमं सूक्तमेकोनत्रिंशत्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥७॥२९॥